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  • Bhojpuri: जहां से तय होला देश क मानक समय, जानीं मिर्जापुर क खासियत: आईएसटी यानी भारतीय मानक समय क निर्धारण पहिली सितंबर, 1947 के भयल रहल, जबकि मानक समय के स्थान क निर्धारण 2007 में कयल गयल. मिर्जापुर में विंध्यवासिनी माई क मंदिर हौ. मंदिर से थोड़य दूरी पर अमरावती चौराहा हौ, जहां से देश क मानक समय लेहल गयल हौ. विंध्याचल के एह भौगोलिक खासियत के बारे में देश का, मिर्जापुर अउर विंध्याचल क स्थानीय लोग भी न के बराबर जानयलन. सन 2007 में दिल्ली क स्पेस नावे वाली एक संस्था क टीम मिर्जापुर पहुंचल रहल. भूगोल विशेषज्ञन क इ टीम चार-पांच दिना विंध्याचल अउर आसपास के इलाकन क नाप-जोख कइलस अउर ’टोटल स्टेशन’ के मदद से अंत में अमरावती चौराहा के पास खूंटा गाड़ि देहलस. चौराहा के पच्छू ओरी भारतीय मानक समय(आईएसटी) क एक बोर्ड लगि गयल. बाद में प्रशासन एह स्थान के घेरि के एक ठे छोट क पार्क बनाइ देहलस. आईएसटी क स्थान त निर्धारित होइ गयल, लेकिन एतने महत्वपूर्ण स्थान के बारे में स्थानीय लोग आज भी बहुत कम जानयलन. केहूं के एकरे बारे में जानय-समझय क रुचि भी नाहीं हौ. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में भूगोल क प्रोफेसर आनंद दीपायन क कहना हौ कि भारत क मानक समय रेखा 82 डिग्री 30 मिनट से निर्धारित हौ, अउर इ काल्पनिक देशांतर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा अउर आंध्रप्रदेश से होइ के गुजरयला. एही देशांतर पर मौजूद मिर्जापुर में विंध्याचल के पास क स्थान मानक समय क स्थान हौ. प्रोफेसर दीपायन के अनुसार, कवनो भी देश के मानक समय क निर्धारण देश के पूरुब से पच्छू तक के विस्तार के लगभग मध्य भाग से गुजरय वाली मानक देशांतर रेखा के अधार पर कयल जाला. दीपायन क कहना हौ कि चूंकि इ विषय अकादमिक हौ त एकरे बारे में अकादमिक लोग ही जादा जानयलन, उ भी एह विषय से जुड़ल होग. लेकिन एकरे बारे में आम जनता के भी जागरूक करय के चाही. शासन-प्रशासन अगर एह स्थान के अच्छे से विकसित कइ के थोड़ा प्रचार-प्रसार कइ देय त इ जगह एक अच्छा-खासा पर्यटन स्थल बनि जाई अउर देश भर से लोग एह स्थान के देखय आवय लगिहय. एहसे लोगन के अपने भूगोल के बारे में भी जानकारी होई. हिंदू पंचांग में भी विंध्याचल के ही मानक मानि के समय क गणना कयल जाला. काशी से निकलय वाला सबसे प्रतिष्ठित ऋषिकेष पंचांग के अनुसार, दुनिया क एक सबसे पुराना शहर वाराणसी मिर्जापुर से एक मिनट 32 सेकेंड पूर्वी देशांतर पर स्थित हौ. पुराण में भी एह बात क जिक्र हौ कि लंका क राजा रावण विंध्याचल के ही मानक समय क स्थान मनले रहल, अउर एही ठिअन के समय से उ ज्योतिषीय गणना करय. रावण विंध्याचल के ही पृथ्वी क केंद्र मानय अउर केंद्र के रूप में विंध्यवासिनी धाम के उत्तर ओरी एक शिवलिंग क स्थापना कइले रहल. रावण विध्यवासिनी माई के बिंदुवासिनी माई बोलावय. विंध्याचल के जयपुरिया गली में इ प्राचीन शिवलिंग विंध्येश्वर महादेव के रूप में आज भी मौजूद हौ, अउर विंध्यवासिनी माई क दर्शन करय जाए वाला श्रद्धालु एह शिवलिंग क भी दर्शन-पूजन करयलन. अमरावती चौराहा वाला स्थान विंध्येश्वर महादेव से एक किलोमीटर के दूरी पर हौ. विध्यवासिनी धाम धरती पर मौजूद माई के 51 शक्तिपीठन में सबसे अलग हौ. इ शक्तिपीठ जाग्रत शक्तिपीठ मानल जाला. शिवपुराण में माई विंध्यवासिनी के सती मानल गयल हौ. श्रीमद्भागवत में माई के नंदजा देवी कहल गयल हौ. माई क दूसर नाव कृष्णानुजा अउर वनदुर्गा भी हौ. शास्त्र में एह बात क भी उल्लेख हौ कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूरे रूप में विराजमान नाहीं हइन. देवी के अलग-अलग अंग क प्रतीक रूप में ही हर जगह पूजा होला. लेकिन विंध्याचल एकमात्र शक्तिपीठ हौ, जहां माई के पूरे विग्रह क दर्शन-पूजन होला. Source- https://hindi.news18.com/news/bhojpuri-news/know-the-specialty-of-mirzapur-in-bhojpuri-3841153.html

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